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एक गरीब लकड़हारा रोज जंगल में लकड़ियाँ काटता और बेचकर अपने परिवार की गुजर-बसर करता था. एक दिन अचानक उसकी कुल्हाड़ी नदी में जा गिरी. वह दुःखी होकर भगवान से प्रार्थना करने लगा कि वे उसकी कुल्हाड़ी किसी तरह उसे वापस दिला दें. लकड़हारे की सच्चे मन से की गई प्रार्थना सुनकर भगवान प्रकट हुए और नदी के पानी से एक चाँदी की कुल्हाड़ी बाहर निकाली और लकड़हारे से पूछा, क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है ? लकड़हारा बोला, “नहीं भगवान, ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है.” भगवान ने पुनः पानी से सोने की कुल्हाड़ी निकाली और उससे पूछा, क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है ?” वह बोला, “नहीं भगवान ये सोने की कुल्हाड़ी है इससे लकड़ियाँ नहीं कटती. ये मेरे किसी काम की नहीं है. मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की है.” भगवान मुस्कुराये और पानी में हाथ डालकर कुल्हाड़ी निकाली वह लोहे की थी. इस बार कुल्हाड़ी देख लकड़हारा प्रसन्न हो गया और बोला, “भगवान, यही मेरी कुल्हाड़ी है। भगवान उसकी ईमानदारी देख बहुत प्रसन्न हुए और बोले, “पुत्र! मैं तुम्हारी ईमानदारी से अत्यंत प्रसन्न हूँ. इसलिए तुम्हें लोहे की कुल्हाड़ी के साथ सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी भी देता हूँ.”
1. लकड़हारा पेड़ काटने कहाँ जाता था ?
2. लकड़हारा अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करता था ?
3. लकड़हारा कब प्रशन्न हो गया ?
4. भगवान ने लकड़हारे को कितनी कुल्हाड़ी दी ?
5. भगवान कब प्रशन्न हुए ?